ब्रेकिंग….संभल
पहले बताया बीमार फिर बताने लगे पिता पुत्र की उम्र में मात्र 13 वर्ष का अंतर, क्लेम देने से किया इनकार, उपभोक्ता आयोग ने 10 लाख रुपए बीमा धनराशि अदा करने के दिए आदेश, साथ ही लगाया ₹25000 का जुर्माना,
संभल – ग्राम रसूलपुर धतर निवासी ज्ञान प्रकाश के पिता रामचंद्र ने अपने जीवन काल में एक अपनी जीवन बीमा पॉलिसी एचडीएफसी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी से कराई थी।
पॉलिसी के कुछ माह बाद उनकी मृत्यु घर पर ही हो गई तो नॉमिनी ज्ञान प्रकाश द्वारा समस्त औपचारिकता पूर्ण कर अपने पिता की मृत्यु के संबंध में बीमित धनराशि प्राप्त करने का आग्रह बीमा कंपनी से किया गया तो बीमा कंपनी द्वारा ज्ञान प्रकाश को बताया गया कि उनके पिता पॉलिसी क्रय करते समय बीमार थे जिस कारण बीमा धनराशि अदा नहीं की जा सकती।
जिस पर ज्ञान प्रकाश ने अनेकों बार बीमा कंपनी से अपना पक्ष लगाते हुए कहा की पॉलिसी क्रय करते समय उसके पिता कोई भी बीमारी से ग्रस्त नहीं थे स्वास्थ्य दे परंतु बीमा कंपनी ने उसकी बात नहीं सुनी।
तो उन्होंने उपभोक्ता मामलों के विशेषज्ञ अधिवक्ता लवमोहन वार्ष्णेय से संपर्क किया और आप बीती बताई पूरी बात सुनकर उनकी ओर से जिला उपभोक्ता आयोग जनपद संभल में परिवाद को प्रस्तुत किया गया और आयोग ने बीमा कंपनी को अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया जहां बीमा कंपनी ने उपस्थित होकर आयोग को बताया कि उनके पिता पूर्व बीमारी से ग्रस्त थे तथा उसकी और उसके पिता की उम्र में मात्र 13 वर्ष का ही अंतर है जिस कारण बीमा धनराशि नहीं दी जा सकती।
इस पर अधिवक्ता लव मोहन वार्ष्णेय द्वारा आयोग को अवगत कराया गया की बीमा धारक बीमा पॉलिसी क्रय करते समय किसी पूर्व बीमारी से ग्रस्त नहीं थे बल्कि उनकी मृत्यु घर पर ही हृदय गति रुकने से हुई थी बीमा कंपनी जिस बीमारी का जिक्र कर रही हैं वह बीमारी उनको नहीं थी इस संबंध में उनके द्वारा ना तो कोई भी इलाज के पेपर या बीमार होने के संबंध में कोई भी पर्चे माननीय आयोग में दाखिल नहीं किए हैं तथा उम्र के संबंध में क्योंकि जो लोग गांव में निवास करते हैं वो अपनी उम्र अंदाजे से लिखाते है ऐसी दशा में जन्म प्रमाण पत्र न होने के कारण गांव वालों के कहने पर ही अपनी उम्र को दिखाया जाता है।
जबकि ज्ञान प्रकाश की उम्र बिल्कुल सही लिखी हुई है ऐसी दशा में यदि बीमा कंपनी को इस पर आपत्ति थी तो पूर्व में आवेदन करते समय आपत्ति लगाते अब ऐसी दशा में इस प्रकार की आपत्ति स्वीकार नहीं की जा सकती।
आयोग ने दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की बहस सुनी और अपना आदेश बीमा कंपनी को देते हुए कहा कि परिवाद बीमा कंपनी के विरुद्ध स्वीकार किया जाता है।
बीमा कंपनी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को मुबलिग 10 लाख रुपए बीमा धनराशि उस पर परिवाद संस्थान की तिथि से 7% प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित अंदर दो माह में अदा करें। इसकेअलावा परिवादी ₹20000 मानसिक कष्ट एवं आर्थिक हानि की मद में तथा ₹5000 बाद व्यय की मद में भी अदा करें।
नियत अवधि में धनराशि अदा न करने के कारण ब्याज की दर 9% वार्षिक दे होगा।
